आलोचना >> छायावादी काव्य का व्यावहारिक सौन्दर्यशास्त्र छायावादी काव्य का व्यावहारिक सौन्दर्यशास्त्रसूर्यप्रसाद दीक्षित
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छायावाद आधुनिक हिन्दी कविता का शिखर है। साहित्य सौन्दर्य की, शुद्ध कविता की और वृहत्तर मानव मूल्यों की सर्वश्रेष्ठ साधना इस युग में प्रतिफलित हुई है
छायावाद आधुनिक हिन्दी कविता का शिखर है। साहित्य सौन्दर्य की, शुद्ध कविता की और वृहत्तर मानव मूल्यों की सर्वश्रेष्ठ साधना इस युग में प्रतिफलित हुई है। इससे बड़ा फलक और किसी पूर्ववर्ती-परवर्ती युग धारा को नहीं मिला है।
इस काव्य की सर्वोच्च सिद्धि है-साहित्येतर अव- धारणाओं से काव्य को अनाहत और अक्षुण्ण बनाये रखने की रहा। यह वह धारा है, जिसने कविता को स्वायत्त अनुशासन का रूप दिया है और उसे एक परिपूर्ण व्यवस्था के रूप में परिणत कर दिया है। इन कवियों की अन्तदृष्टि वस्तुत: वैश्विक है। यह इनकी अविस्मरणीय उपलब्धि है। सौन्दर्यबोध छायावाद का सर्वाधिक मौलिक प्रदेय है। भारतीय साहित्य साधना में आचार्य शंकर, महाकवि कालिदास और गुरुदेव रवीन्द्रनाथ के पश्चात् सौन्दर्य की अनाविल सृष्टि यदि कहीं एकत्र दिखायी देती है तो छाया- वादी कवियों में। इन कवियों ने भक्तिकाव्य तथा द्विवेदी युग के परहेजी संस्कार, रीतिकालीन कवियों के कायिक कौतुकी कदाचार और प्रगतिवादियों, प्रयोगवादियों एवं साठोत्तरी पीढ़ियों के यौनाकुल आवेश ज्वार से ऊपर उठकर सौन्दर्य की श्रेष्ठ साधना की है। इनका सौन्दर्य विधान इतना व्यापक है, इनका चित्राधार इतना विराट है और इनकी सृष्टि-दृष्टि इतनी विलक्षण है कि उसमें प्राय: जीवन का सर्वस्व समाहित हो गया है।
हिन्दी सौन्दर्यशास्त्र सम्प्रति अपनी स्वायत्तता की खोज में है। भारतीय संस्कृति, भाषिक प्रकृति और हिन्दी जाति की संश्लिष्ट संवेदना ही अपनी अस्मिता है। इसे सहेजने के लिए व्यावहारिक सौन्दर्यशास्त्र ही सक्षम हो सकता है। इस अध्ययन द्वारा छायावादी कवियों की शब्द रूढ़ियों के माध्यम से उनके उपचेतन में विद्यमान अर्थच्छवियों और बिम्बों को रूपायित किया गया है। यह समाज मनोभाषिकी, शब्द सांख्यिकी, संरचनात्मक समीक्षा और संवेदनशास्त्र का एक समन्वित-समेकित प्रयास है। वस्तुत: व्यावहारिक समीक्षा के समानान्तर यह एक अभिनव उपागम है और सौन्दर्यशास्त्रीय अध्ययन परंपरा में एक नया प्रस्थान भी।
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